यहां बीमार पड़ने पर खाट की डोली का सहारा लेने की विवशता

यहां बीमार पड़ने पर खाट की डोली का सहारा लेने की विवशता


यहां बीमार पड़ने पर खाट की डोली का सहारा लेने की विवशता
स्तंभन्यूज, संवाददाता। 
बेरमो अनुमंडल अंतर्गत गोमिया प्रखंड की सियारी पंचायत के काशीटांड़, असनापानी, बिरहोरडेरा, धमधरवा व परसापानी ग्राम में सड़क नहीं है। इस कारण यहां बीमार पड़ने पर खाट की डोली का सहारा लेने की विवशता से स्थानीय ग्रामीण दो-चार हैं। क्योंकि रोड के अभाव में आदिवासी बहुल उन पांच गांवों तक एंबुलेंस या कोई चारपहिया वाहन नहीं पहुंच पाता है। सिर्फ ईंट ढुलाई में लगे इक्का-दुक्का ट्रैक्टर संचालित होते हैं। पथरीले रास्ते व पगडंडियों के सहारे आवागमन करने को यहां की लगभग 400 आबादी विवश है। फिर भी इस ओर न तो प्रशासन का ध्यान है और न ही जनप्रतिनिधि सुध ले रहे। यह पांचाें गांव गोमिया प्रखंड मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर हैं। इन गांवों से लगभग 12 किलोमीटर दूर डुमरी विहार रेलवे स्टेशन तक ही एंबुलेंस या कोई चारपहिया वाहन पहुंच पाता है। इसलिए गंभीर रूप से बीमार पड़ने या दुर्घटनाग्रस्त होने पर मरीज को खाट की डोली के सहारे ही ऊबड़-खाबड़ रास्ते से डुमरी विहार रेलवे स्टेशन तक लाना पड़ता है, जहां से एंबुलेंस या किसी चारपहिया वाहन से गोमिया या रामगढ़ स्थित अस्पताल ले जाया जाता है।

समय पर उपचार नहीं हो पाने के कारण हो जाती मौत : सियारी पंचायत के काशीटांड़, बिरहोरडेरा, असनापानी, धमधरवा व परसापानी ग्राम में जब मरीज की तबीयत ज्यादा बिगड़ जाती है अथवा कोई गंभीर रूप से दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है, तब समय पर उपचार नहीं हो पाने के कारण उसकी मौत हो जाती है। बीते 17 सितंबर को धमधरवा ग्राम निवासी लालचंद बेसरा का तीन वर्षीय पुत्र निखिल बेसरा स्थानीय डोभा के पानी में डूब गया था, जब उसे निकाला गया तब सांस चल रही थी। फोन से सूचना देने पर भी 108 एंबुलेंस के चालक ने रास्ता नहीं होने की बात कहकर आने से इन्कार कर दिया था। इस कारण इलाज के अभाव में उस मासूम बच्चे ने दम तोड़ दिया था। वहीं, 31 अगस्त को चलती पैसेंजर ट्रेन से गिरने से घायल होकर एक वृद्ध पांच दिनों तक बिरहोरडेरा स्थित स्कूल में पडा़ रहा था। सूचना मिलने पर मुखिया रामवृक्ष मुर्मु ने चार सितंबर को उस वृद्ध को एक ट्रैक्टर पर लदवाकर डुमरी विहार स्टेशन भेजवाया था, जहां से उन्हें एंबुलेंस से इलाज के लिए गोमिया स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया था। जबकि बीते 29 मई को बिरहोरडेरा निवासी सुरुजमुनी देवी को बीमार पडने पर खटिया की डोली पर लादकर कोयोटांड स्थित सड़क पर लाया गया था, जहां से एंबुलेंस से रामगढ़ स्थित अस्पताल ले जाया गया, लेकिन समय पर इलाज नहीं हो पाने के कारण उनकी मौत 31 मई को हो गई थी।

--बेटे की शादी को रिश्ता तय करने में होती काफी दिक्कत : सियारी पंचायत के मुखिया रामवृक्ष मुर्मु ने बताया कि यहां स्थित काशीटांड़, असनापानी, बिरहोरडेरा, धमधरवा व परसापानी ग्राम में सड़क नहीं होने के कारण स्थानीय लोगों को कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता है। साथ ही बेटे की शादी के लिए रिश्ता तय करने में काफी दिक्कत होती है। क्योंकि सड़क की सुविधा नहीं होने के कारण इन गांवों में अन्य गांव के लोग अपनी बेटियों की शादी नहीं करना चाहते हैं। यहां के बिरहोरडेरा, काशीटांड़ एवं असनापानी में चार वर्ष पहले बिजली तो पहुंची, लेकिन मात्र डेढ़ माह बाद ही गुल हुई तो अबतक अंधेरा छाया हुआ है। कारण पूछने पर विभागीय अधिकारी तकनीकी गड़बड़ी बताते हैं, लेकिन दुरुस्त करने की कोई पहल नहीं की जा रही। जलापूर्ति की भी कोई सुविधा नहीं है। इसलिए लोग डांडी़ व चुआं का दूषित पानी पीने को विवश हैं। इन समस्याओं से प्रखंड मुख्यालय को अवगत कराया गया है। पिछले दिनों बीडीओ सहित अन्य विभागीय अधिकारियों ने यहां बाइक से आकर सड़क, बिजली-पानी आदि समस्याओं का समाधान कराने का आश्वासन दिया था। अब देखना है कि उसे कब अमल में लाया जाता है।

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ग्रामीणों ने सुनाई अपनी व्यथा

काशीटांड़ ग्राम निवासी ऐतो मुर्मु,ने  बताया कि  गावों में सड़क, बिजली व पानी का अभाव है। सड़क नहीं रहने के कारण सबसे ज्यादा परेशानी प्रसव पीड़ा से ग्रसित महिलाओं को होती है। रोड के अभाव में गांव में एंबुलेंस या चारपहिया वाहन नहीं पहुंचने के कारण खाट को डोली की तरह बनाकर और उस पर लादकर चार आदमी कंधा देकर मरीज को लगभग 12 किलोमीटर दूर स्थित सड़क तक पहुंचाते हैं, तब जाकर अस्पताल ले जाया जाता है। इसी तरह मनसू मांझी ने कहा कि सियारी पंचायत को आदर्श पंचायत का दर्जा दिया है, जो सिर्फ नाम का है। यहां मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है। सबसे बड़ी समस्या इस क्षेत्र में सड़क की है। सड़क के अभाव में यहां के पांच गांव काशीटांड़, असनापानी, बिरहोरडेरा, धमधरवा व परसापानी टापू सरीखा बनकर रह गया है। सड़क के अभाव के कारण अत्यधिक आवश्यकता पड़ने पर ही यहां के लोग अपने गांव से बाहर निकलते हैं। 

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