किसानों के लिए वरदान बनेगी सब्जियों के पौधों की ग्राफ्टिंग
किसानों के लिए वरदान बनेगी सब्जियों के पौधों की ग्राफ्टिंग
संवाददाता, स्तंभ न्यूज :
बोकारो जिले के किसान पारंपरिक खेती से हटकर कुछ नया कर रहे हैं। यहां के किसान ग्राफ्टेड विधि विकसित टमाटर व बैगन की खेती कर रहे हैं, जिससे किसान को कम पानी में अच्छी पैदावार हो रही है। ग्राफ्टेड टमाटर की खेती से किसानों को अच्छी पैदावार तो मिल ही रहा है, साथ ही उसमें लगने वाली बीमारी उकठा (विल्टिंग) से भी निजात मिलेगा। पेटरवार प्रखंड के किसान योगेंद्र दो एकड़ में ग्राफ्टेड टमाटर व दो एकड़ बैंगन की खेती कर रहे है। पिछले दो माह से उनकी फसल स्थानीय मंडियों में हाथों हाथ बिक रही है। ग्राफ्टेड विधि से खेती करने के लिए योगेंद्र ने पिछले साल छत्तीसगढ़ व नोएडा जाकर इसका प्रशिक्षण भी लिया था। वापस लौटने के बाद करीब 50 डिसमिल में प्रयोग के तौर पर ग्राफ्टेड टमाटर व बैगन की खेती की थी। सफल होने के बाद इस वर्ष बड़े पैमाने पर टमाटर व बैगन की खेती कर रहे हैं। वहीं चंद्रपुरा प्रखंड की तारानारी पंचायत के किसान हीरालाल महतो ने एक एकड़ में जंगली बैगन के साथ ग्राफ्टेड टमाटर की खेती कर रहे हैं। हीरा लाल महतो ने तीन साल पूर्व में पचास डिसमिल जमीन में ड्रिप एवं मलचींग विधि का प्रयोग कर खेती करनी प्रारंभ किया था। धीरे-धीरे वह अपने भाई के साथ आठ एकड़ में विभिन्न प्रकार के सब्जियों की खेती कर रहे हैं। हीरा लाल ने बताया कि इसकी जानकारी उन्हें यू-ट्यूब देख कर हुई थी, जिसके बाद छत्तीसगढ़ से करीब ढाई हजार ग्राफ्टेड टमाटर का पौधा मंगवाया। प्रति पौधा उन्हें करीब 12 रुपये ट्रांस्पोर्टिंग के साथ पड़ा था। टमाटर के इस प्रजाति से आम फसल के मुकाबले डेढ़ से दो गुना फसल मिल रही है। प्रशिक्षण लेकर लौटे किसान योगेंद्र ने बताया कि फिलहाल शिमला मिर्च, टमाटर व बैगन के ग्राफ्टेड पौधे मिल रहे है जिसकी किसान खेती कर सकते हैं।
बोकारो जिले के किसान पारंपरिक खेती से हटकर कुछ नया कर रहे हैं। यहां के किसान ग्राफ्टेड विधि विकसित टमाटर व बैगन की खेती कर रहे हैं, जिससे किसान को कम पानी में अच्छी पैदावार हो रही है। ग्राफ्टेड टमाटर की खेती से किसानों को अच्छी पैदावार तो मिल ही रहा है, साथ ही उसमें लगने वाली बीमारी उकठा (विल्टिंग) से भी निजात मिलेगा। पेटरवार प्रखंड के किसान योगेंद्र दो एकड़ में ग्राफ्टेड टमाटर व दो एकड़ बैंगन की खेती कर रहे है। पिछले दो माह से उनकी फसल स्थानीय मंडियों में हाथों हाथ बिक रही है। ग्राफ्टेड विधि से खेती करने के लिए योगेंद्र ने पिछले साल छत्तीसगढ़ व नोएडा जाकर इसका प्रशिक्षण भी लिया था। वापस लौटने के बाद करीब 50 डिसमिल में प्रयोग के तौर पर ग्राफ्टेड टमाटर व बैगन की खेती की थी। सफल होने के बाद इस वर्ष बड़े पैमाने पर टमाटर व बैगन की खेती कर रहे हैं। वहीं चंद्रपुरा प्रखंड की तारानारी पंचायत के किसान हीरालाल महतो ने एक एकड़ में जंगली बैगन के साथ ग्राफ्टेड टमाटर की खेती कर रहे हैं। हीरा लाल महतो ने तीन साल पूर्व में पचास डिसमिल जमीन में ड्रिप एवं मलचींग विधि का प्रयोग कर खेती करनी प्रारंभ किया था। धीरे-धीरे वह अपने भाई के साथ आठ एकड़ में विभिन्न प्रकार के सब्जियों की खेती कर रहे हैं। हीरा लाल ने बताया कि इसकी जानकारी उन्हें यू-ट्यूब देख कर हुई थी, जिसके बाद छत्तीसगढ़ से करीब ढाई हजार ग्राफ्टेड टमाटर का पौधा मंगवाया। प्रति पौधा उन्हें करीब 12 रुपये ट्रांस्पोर्टिंग के साथ पड़ा था। टमाटर के इस प्रजाति से आम फसल के मुकाबले डेढ़ से दो गुना फसल मिल रही है। प्रशिक्षण लेकर लौटे किसान योगेंद्र ने बताया कि फिलहाल शिमला मिर्च, टमाटर व बैगन के ग्राफ्टेड पौधे मिल रहे है जिसकी किसान खेती कर सकते हैं।
- छह फीट तक का होता है पौधा, बीमारी का खतरा नहीं : ग्राफ्टेड विधि से तैयार टमाटर व बैगन के पौधा में सामान्यत: लगने वाली उकठा बीमारी नहीं असर करती है। साथी कीड़े मकौड़े लगने का भी खतरा कम होता है। इसमें आम पौधों के मुकाबले रोगों से लड़ने की क्षमता अधिक होती है। उत्पादन भी ज्यादा होता है, एक पौधा पांच से छह फीट ऊंचा होता है। ग्राफ्टिंग पौधा की सबसे खास बात यह होता है कि यह काफी मजबूत होते हैं, लंबे समय तक विपरीत परिस्थिति में भी जीवित रह सकते हैं। इन पौधों को 72-96 घंटे तक पानी से भरे रहने पर भी खराब नहीं के बराबर होते हैं। जबकि टमाटर की दूसरी प्रजाति 20 से 24 घंटे से ज्यादा जलभराव झेल नहीं पाते है। टमाटर की ग्राफ्टिंग जंगली बैगन के साथ ही किया गया है, क्योंकि बैगन का पौधा ज्यादा मजबूत होता है।
वहीं इस संबंध में वरीय कृषि वैज्ञानिक का कहना है कि बीमारी से बचाव व रोग
प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए ग्राफ्टेड सब्जियों के पौधा का प्रयोग
किसान कर रहे हैं। जंगली बैंगन के साथ टमाटर की ग्राफ्टिंग कर नया पौधा
तैयार किया गय है। पौधों में लगने वाली उकठा
बीमारी जो की मिट्टी से है लगता है, वह ग्राफ्टिंग कर तैयार किए गए पौधा
पर असर नहीं करता है। जिस कारण किसानों की फसल बर्बाद होने से बच जाती है।
अभी इसके मदर रूट पौधा को बाहर से ही मंगाया जा रहा है, रांची प्रयोगशाला
में इसपर रिसर्च चल रहा है। बहुत जल्द अपने यहां भी यह पौधा विकसित होने
लगेगा।
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