रहमतों व बरकतों से लबरेज है पूरा रमजान माह
जामा मस्जिद के मौलाना मो. जमाल ने बताया मुकद्दस माह का महत्व। इस माह में हर तरफ चलता रहता अल्लाह की इबादतों का सिलसिला। यह महीना मदद, हमदर्दी, भाईचारे व इंसानियत को बढ़ावा देने का भी देता पैगाम।
माह-ए-मुबारक
स्तंभ न्यूज डेस्क : रमजान एक ऐसा मुबारक माह है, जो रहमतों व बरकतों से लबरेज है। इस माह में हर तरफ अल्लाह की इबादतों का सिलसिला चलता रहता है। रमजानुल मुबारक मुसलमानों के लिए सबसे अफजल है। यह महीना मदद, हमदर्दी, भाईचारे व इंसानियत काे
बढ़ावा देने का पैगाम भी देता है। जामा मस्जिद के मौलाना मो. जमाल ने
मुकद्दस माह रमजान का महत्व बताते हुए कही। उन्होंने फरमाया कि रमजान माह
में सारे मुसलमान खुदा की इबादत में मशगूल रहते हैं। कुरआन-ए-पाक की तिलावत
मस्जिदों व घरों में होती है। रमजान सब्र का महीना है और सब्र का सवाब
जन्नत है। पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने रमजान-उल-मुबारक की काफी फजीलत बयान फरमाई है। यह हमदर्दी व गमख्वारी का महीना है। रमजान के महीने में की गई इबादत व नेकी का सवाब सत्तर गुना मिलता है।
--ताक रातों में करनी चाहिए शब-ए-कद्र तलाश : रमजान का पूरा महीना रहमतों व बरकतों से भरा है, लेकिन सबसे अहम है तीसरा अशरा यानी आखिरी दस दिन हैं। क्योंकि इसी अशरे की ताक रातों यानी 21, 23, 25 व 27 की रात में शब-ए कद्र-हो सकती है। इसलिए ताक रातों में इबादत कर शब-ए-कद्र तलाश करनी चाहिए। शब-ए-कद्र में की गई इबादत का सवाब 1000 साल की इबादतों के बराबर होता है। 27 रमजान की रात कुरआन शरीफ नाजिल हुआ था। इसलिए 27 रमजान की रात की इबादत की काफी अहमियत काफी है। सभी रोजेदार पांच ताक रातों में जागकर अल्लाह की इबादत करें।
--सहरी व इफ्तार के वक्त होती दुआ कुबूल : रमजान माह की इबादत की बदौलत बंदा और ज्यादा अल्लाह तआला के करीब हो जाता है। रमजान के महीने भर की इबादत का मकसद यह है कि बंदा साल भर के बाकी ग्यारह माह भी अल्लाह तआला से डरते हुए जिंदगी गुजारे और गुनाहों से बचे। हदीस शरीफ में लिखा है कि जो रमजान में रोजे रखे ईमान-यकीन के साथ। उसके पिछले तमाम छोटे-मोटे गुनाह माफ हो जाते हैं। रमजान में अल्लाह का जिक्र करने वालों को बख्श दिया जाता है। रमजान के महीने में अल्लाह पाक से मांगने वाला कभी भी महरूम यानी वंचित नहीं रहता। रमजान ऐसा महीना है, जिसमें हर रोज और हर समय इबादत होती है। रमजानुल मुबारक में सहरी व इफ्तार के वक्त दुआ कुबूल होती है।
--ताक रातों में करनी चाहिए शब-ए-कद्र तलाश : रमजान का पूरा महीना रहमतों व बरकतों से भरा है, लेकिन सबसे अहम है तीसरा अशरा यानी आखिरी दस दिन हैं। क्योंकि इसी अशरे की ताक रातों यानी 21, 23, 25 व 27 की रात में शब-ए कद्र-हो सकती है। इसलिए ताक रातों में इबादत कर शब-ए-कद्र तलाश करनी चाहिए। शब-ए-कद्र में की गई इबादत का सवाब 1000 साल की इबादतों के बराबर होता है। 27 रमजान की रात कुरआन शरीफ नाजिल हुआ था। इसलिए 27 रमजान की रात की इबादत की काफी अहमियत काफी है। सभी रोजेदार पांच ताक रातों में जागकर अल्लाह की इबादत करें।
--सहरी व इफ्तार के वक्त होती दुआ कुबूल : रमजान माह की इबादत की बदौलत बंदा और ज्यादा अल्लाह तआला के करीब हो जाता है। रमजान के महीने भर की इबादत का मकसद यह है कि बंदा साल भर के बाकी ग्यारह माह भी अल्लाह तआला से डरते हुए जिंदगी गुजारे और गुनाहों से बचे। हदीस शरीफ में लिखा है कि जो रमजान में रोजे रखे ईमान-यकीन के साथ। उसके पिछले तमाम छोटे-मोटे गुनाह माफ हो जाते हैं। रमजान में अल्लाह का जिक्र करने वालों को बख्श दिया जाता है। रमजान के महीने में अल्लाह पाक से मांगने वाला कभी भी महरूम यानी वंचित नहीं रहता। रमजान ऐसा महीना है, जिसमें हर रोज और हर समय इबादत होती है। रमजानुल मुबारक में सहरी व इफ्तार के वक्त दुआ कुबूल होती है।
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