लुगूबुरु धोरोमगढ़ में संतालियों के सामाजिक संविधान व संस्कृति की हुई थी रचना

संथाली आदिवासियों का सबसे बड़ा धर्म स्थल है लुगूबुरु घंटाबाड़ी। प्रत्येक साल लगने वाले कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाले मेले में देश-विदेश से आदिवासी पहुंच अपने अतीत के बारे में जानते हैं।


लुगूबुरु धोरोमगढ़ में संतालियों के सामाजिक संविधान व संस्कृति की हुई थी रचना
संवादाता, स्तंभन्यूज : बेरमो अनुमंडल अंतर्गत गोमिया प्रखंड के ललपनिया के निकट है लुगूबुरु घंटाबाड़ी धोरोमगढ़, जिससे संताली आदिवासियों का गौरवशाली अतीत जुड़ा हुआ है। इस धर्मस्थल के प्रति संतालियों की असीम आस्था है। साथ ही मान्यता है कि हजारों वर्ष पूर्व उनके पूर्वजों ने लुगू पहाड़ की तलहटी स्थित दोरबारी चट्टान में लुगूबाबा निरंतर 12 वर्ष तक बैठक कर उनके सामाजिक संविधान एवं संस्कृति की रचना की थी, जिसका पालन आज भी संताली समुदाय के लोग करते हैं। संतालियों का मानना है कि संताली सहित अन्य समुदाय के जो लोग यहां लुगूबाबा की पूजा-अर्चना करते हैं, उनकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।
  • चट्टानों पर पूर्वज लगाते थे दरबार : लुगूबुरु घंटाबाड़ी धोरोमगढ़ के आसपास चट्टानों की भरमार है, जो संताली समुदाय के बीच दोरबारी चट्टान के नाम से विख्यात है। कहा जाता है कि इन्हीं चट्टानों को आसन के तौर पर इस्तेमाल कर इनके पूर्वज हजारों वर्ष पूर्व यहां दरबार लगाया करते थे।
  • दोरबारी चट्टान में ओखली मौजूद : घंटाबाड़ी स्थित दोरबारी चट्टान के लगभग आधा दर्जन चट्टानों में संतालियों के पूर्वजों ने गड्ढा कर ओखली के रूप में उपयोग किया था, जो आज भी मौजूद है। उनमें कुछेक देखरेख के अभाव में भर गए हैं, लेकिन कई आज भी अपने पुराने स्वरूप में मौजूद हैं। बताया जाता है कि इन्हीं ओखलियों में संतालियों के पूर्वज धान आदि कूटा करते थे।
  • हर विधि-विधान में लुगूबुरु का जिक्र : संतालियों के हर पूजन के विधि-विधान एवं कर्मकांडों में लुगूबुरु का जिक्र किया जाता है। इस समुदाय के लोकनृत्य एवं लोकगीत बिना घंटाबाड़ी के जिक्र के पूर्ण नहीं होता। यह परंपरा हजारों वर्ष पूर्व से संतालियों के बीच प्रचलित है, जो लुगुबुरु के प्रति संतालियों की अटूट आस्था व विश्वास का प्रतीक है। संताली समुदाय के दशहरा के मौके पर किए जाने वाले लोकनृत्य दशांय में भी लुगूबुरु घंटाबाड़ी धोरोमगढ़ का जिक्र किया जाता है। लुगूबुरु घंटाबाड़ी धोरोमगढ़ में प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर संतालियों का धर्म महासम्मेलन होता है। जिसमें देश-विदेश से आदिवासी पहुंचते हैं।
  • पेड़ की जटा से रिसते पानी अमृत : लुगू पहाड़ की तलहटी में ही छरछरिया जलप्रपात सह नाला है, जिसके समीप विशाल चट्टान में उगे बरगद के पेड़ की जटा से रिसते पानी की बूंदों को संताली आदिवासी अमृत मानते हैं। इसलिए लुगूबुरु घंटाबाड़ी धोरोमगढ़ में पूजा-अर्चना करने के बाद बोतलों व अन्य बर्तनों में यह अमृत भरकर संताली समुदाय के लोग ले जाते हैं। संतालियों की मान्यता है कि अमृत तुल्य यह पानी पीने से असाध्य रोगों से भी मुक्ति मिल जाती है। 

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