पक्की सड़क नहीं रहने से हुई आदिवासी छात्रा की मौत

पक्की सड़क नहीं रहने से हुई आदिवासी छात्रा की मौत


पक्की सड़क नहीं रहने से हुई आदिवासी छात्रा की मौत
स्तंभन्यूज, संवादाता। झारंखंड के बोकारो जिले के गोमिया प्रखंड के उग्रवाद प्रभावित ढोढ़ी गांव में एक बार फिर बदहाली का दंश आदिवासी परिवार को झेलना पड़ा। मूलभूत सुविधाओं की राह देखते स्थानीय ग्रामीणों को परेशानी कम होने का नाम ही नहीं ले रही है। ताजा मामला बुधवार का है यहां पक्की सड़क नहीं रहने की वजह से गांव की एक 11 वर्षीय आदिवासी छात्रा की मौत हो गई। स्वजन ने पोस्टमार्टम की डर से छात्रा का अंतिम संस्कार भी कर दिया। वहीं घटना की जानकारी पुलिस को भी नहीं दी गई है। स्वजन से मिली जानकारी के अनुसार रामधन टुडू की 11 वर्षीय पुत्री प्रियंका कुमारी कक्षा दो में पढ़ती थी, स्कूल में परीक्षा चल रहा था। सोमवार को परीक्षा देकर वापस लौटने पर प्रियंका ने पेट में दर्द होने की बात कही। जिसके बाद उसे चतरोचट्टी अस्पताल लेकर गए। जहां प्राथमिक इलाज के बाद उसे वापस घर लेकर आ गए। मंगलवार को परीक्षा दे कर घर लौटने पर फिर से प्रियंका की तबीयत खराब हो गई। शाम होते-होते हालत और भी खराब हो गई। छात्रा प्रियंका को खून की उल्टियां सहित दस्त होने लगा। घर में किसी भी पुरुष के नहीं रहने की वजह से मां जगनी देवी ने आनन-फानन में अपने भाई बुधन मरांडी को बुलाया। जिसके बाद बीमार बच्ची को इलाज के लिए अस्पताल ले जाने के लिए चार पहिया वाहन को बुलाया गया। लेकिन गांव में पक्की सड़क नहीं रहने की वजह से चालक ने गाड़ी अंदर ले जाने से मना कर दिया। जिससे बाद लोगों ने किसी तरह से वाहन को नवडंडा-खूंटाटांड़ कच्चे रास्ते से ढकेलते हुए गांव में पहुंचाया। गाड़ी पहुंचने के बाद बीमार बच्ची व उसकी मां को बैठाकर ग्रामीणों की सहयोग से दोबारा करीब डेढ़ किलोमीटर तक ढकेल कर वापस खूंटाटांड़ पक्की सड़क तक पहुंचाया गया। पक्की सड़क पहुंचे ही बच्ची को लेकर रांची रवाना हो गए, लेकिन ओरमांझी पहुंचते-पहुंचते बच्ची ने दम तोड़ा दिया। जिस वजह से स्वजन निराश वापस लौट आए। वापस लौटने पर स्वजन शव लेकर पक्की सड़क पर ही उतर गए, वहां से पैदल ही शव को लेकर गांव पहुंचे। बच्ची की मौत के बाद स्वजन का रो-रोकर बुरा हाल है। वहीं रोजी रोजगार की तलाश में महाराष्ट्र गए बच्ची के पिता व चाचा को घटना की सूचना दे दी गई। गुरुवार देर शाम तक दोनों के पहुंचने की संभावना है।
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पहले भी कई लोगों की हो चुकी है मौत : गांव के लखीराम मांझी ने बताया कि ढोढ़ी लंबे समय से सड़क की समस्या से हम लोग जूझ रहा है, सड़क नहीं रहने के कारण गांव में कई मौतें हो चुकी हैं। अस्पताल पहुंचने से पहले ही कभी प्रसूता और बच्चे दोनों की मौत हो गई, तो कई बार गर्भ में हीं बच्चे की मौत हो गई। बताया कि सड़क नहीं रहने के कारण रामधन टुडू के दो बच्चे पत्नी के गर्भ में ही मर गये थे। आज फिर सड़क नहीं रहने के कारण उसकी 11 वर्षीय बेटी की मौत हो गई। गाड़ी धकेलने वाले फागु मांझी ने बताया कि कई बार मामूली बुखार जैसी समस्या आने पर मरीज को चार लोगों कि मदद से खाट में बांधकर मुख्य सड़क तक ले जाना पड़ता है। गांव से पांच किलोमीटर की दुर्गम पहाड़ी और पथरीली रास्तों की दूरी तय करते-करते कई बार मरीज अस्पताल पहुंचने के पहले ही काल की गाल में समा जाते हैं। बारिश के मौसम में यह समस्या दोगुनी हो जाती है। चार पहिया तो दूर बाइक चालकों का भी चलना दूभर हो जाता है।

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